JHARKHAND चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ कितना बड़ा मुद्दा

JHARKHAND चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ कितना बड़ा मुद्दा:लोग बोले- 4 लाख/बीघा जमीन का रेट, गांवों से आदिवासी गए सिर्फ ‘मियां’ बचे

JHARKHAND    शाम का वक्त था। झारखंड के साहिबगंज जिले की बोरियो संथाली पंचायत के आंगनबाड़ी केंद्र के सामने कुत्ते जोर-जोर से भौंक रहे थे। लोगों को शक हुआ तो वहां पहुंचे। देखा कि कुत्ते कुछ खाने के लिए एक दूसरे से लड़ रहे हैं। नजदीक जाकर देखा तो ये किसी इंसान के पैर का टुकड़ा था।

वहां से 300 मीटर दूर बंद पड़े मकान के सामने बोरे में लाश के 50 और टुकड़े मिले। इसमें हाथ, पैर, उंगलियां, हड्डियां और घुटनों के पार्ट्स थे, लेकिन सिर गायब था। गांव वालों ने बोरियो थाने में खबर दी, जिसके बाद पुलिस की टीम मौके पर पहुंची। शव के टुकड़े कब्जे में लेकर इन्वेस्टिगेशन शुरू हुई।

 

पता चला कि बोरे में मिली डेडबॉडी गांव के आदिवासी सुर्जा पहाड़िया और चांदी पहाड़िन की 22 साल की बेटी रिबिका पहाड़िया की थी। वो दो दिन पहले से लापता थी। रिबिका को उसके ही पति दिलदार अंसारी ने पहले 50 टुकड़ों में काटा, फिर बोरी में भरकर छिपा दिया था।

रिबिका मर्डर केस के बाद झा JHARKHAND रखंड में लव जिहाद, बांग्लादेशी घुसपैठ और लैंड जिहाद का मुद्दा उठने लगा। अब विधानसभा चुनाव में BJP की सेंट्रल से लेकर स्टेट लीडरशिप संथाल परगना के सोशल डेमोग्राफी में बदलाव को लेकर हेमंत सोरेन सरकार को घेर रही है। वहीं, सत्ताधारी JMM इसे ‘फेक चुनावी मुद्दा’ बता रही है।

क्या JHARKHAND में लव जिहाद और लैंड जिहाद हावी है? क्या वाकई आदिवासी गांवों से आदिवासी गायब हो रहे हैं? बांग्लादेशी घुसपैठ की सच्चाई क्या है? सवालों के जवाब जानने भास्कर की टीम संथाल परगना के आदिवासी गांवों में पहुंची।

शुरुआत बांग्लादेशी घुसपैठ के लिए सबसे ज्यादा बदनाम झारखंड के पाकुड़ से…

आदिवासी गांव झिकरहटी में एक भी आदिवासी परिवार नहीं बचा सबसे पहले हम पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे पाकुड़ जिले के झिकरहटी गांव पहुंचे। 2000 से पहले संथाल जनजाति बाहुल्य गांव था। अब यहां आदिवासियों के सरना स्थल (धार्मिक जगह) से ज्यादा मस्जिदें और मदरसे नजर आते हैं।

यहां रहमतपुर बागान के पास हमें आनंद कुणई मिले। आनंद जन्म से इसी गांव में रहते हैं। आनंद कहते हैं, ‘कभी ये जगह इमली बागान के नाम से जानी जाती थी लेकिन अब इसे रहमतपुर बागान बना दिया गया।’

अब यहां किसकी संख्या ज्यादा है? जवाब में आनंद कहते हैं, ‘गांव में अब बस मियां (मुस्लिम) लोग बच गए हैं।‘ क्या ये लोग पहले से यहां रहते थे या अचानक बसाहट हुई? जवाब में आनंद कहते हैं, ‘नहीं, ये सब इधर-उधर से आकर यहां बसे जा रहे हैं। आदिवासियों की जमीनें खरीद रहे हैं। पहले इस इलाके में मुश्किल से दो-चार मस्जिद ही दिखाई देती थी। अब इनका कोई हिसाब नहीं है।‘

आदिवासी गांव की राशन दुकान के 90% कस्टमर गैर आदिवासी आनंद की बात पर हमें यकीन नहीं हुआ। हमने सच्चाई जानने के लिए में 2009 से राशन दुकान चलाने वाले मोहम्मद मुस्तफा से बात की। उनकी बात सुनकर हम भी हैरान रह गए।

मुस्तफा ने बताया, ‘15 साल पहले गांव में राशन लेने वाले 209 कस्टमर थे। आज इनकी संख्या बढ़कर 400 हो गई है। अभी 90% कस्टमर गैर आदिवासी हैं। बाकी बचे 10% हिंदू हैं। इसमें कुणई और राजवंशी समाज के लोग हैं, लेकिन आदिवासी एक भी नहीं हैं।‘

2009 में यहां कितने आदिवासी थे? ये बताने से पहले वे हड़बड़ाते हैं। फिर कहते हैं कि दोनों तरफ की आबादी बढ़ रही है।

4 लाख रुपए बीघा में बिक रही आदिवासी जमीन गांव से 5 किलोमीटर दूर संथाली टोला है। यही हमारा अगला पड़ाव भी था। टूटी सड़कें, सड़क पर बहती नालियां और छप्पर के घर ये बताने के लिए काफी थे कि हम एक बेहद पिछड़े गांव में पहुंच गए हैं। यहां हमारी मुलाकात मोहम्मद शेख से हुई।

झिकरहटी के रहने वाले शेख संथाल टोला में ठेके का काम करने आए थे। उन्होंने अपना दो मंजिला घर बनाने के साथ यहां जमीनें भी खरीद ली हैं। 4 लाख रुपए बीघा की दर से 4 बीघा जमीन खरीदी है। हमने मोहम्मद शेख से 2 सवाल किए-

सवाल: आपने ये जमीनें किन लोगों से खरीदीं? शेख: हमने जिनसे जमीनें खरीदीं, वे अब मर चुके हैं।

सवाल: SPT एक्ट लागू होने के बाद भी पाकुड़ में जमीनें कैसे खरीदीं ? शेख: यहां आसानी से जमीन की खरीद बिक्री हो रही है। कोई दिक्कत नहीं है।

शेख से बात करने के बाद हमने यहां की महिलाओं से भी बात करने की कोशिश की। लेकिन, कोई भी बात करने को राजी नहीं हुईं।

बांग्लादेशी घुसपैठ का खुलासा करने वाले को मिल रही जानलेवा धमकी जमशेदपुर के मानगो कस्बे में रहने वाले सैयद दानियाल दानिश ने सबसे पहले बांग्लादेशी घुसपैठ का खुलासा किया। दानिश ने झारखंड हाईकोर्ट में PIL फाइल कर दावा किया था कि संथाल परगना में बड़ी तादाद में घुसपैठिए दाखिल हो गए हैं, जिससे वहां की डेमोग्राफी चेंज हो रही है।

आदिवासी तेजी से घट रहे हैं। जनहित याचिका में दानियाल ने कोर्ट को बताया कि संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासी महिलाओं से शादी कर उनका धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। उनकी जमीनें गिफ्ट डीड के जरिए हथिया रहे हैं। हमने दानिश से फोन पर कॉन्टैक्ट किया।

वे कहते हैं, ‘मैं अपनी बहनों के साथ रहता हूं। मुझे अपना और उनका ख्याल रखना है, इसलिए अब कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा।‘

घुसपैठ पर झारखंड हाईकोर्ट के वकील क्या कहते हैं… इसके बाद हम JHARKHAND हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट अभय कुमार मिश्रा के पास पहुंचे। अभय 30 साल से वकालत कर रहे हैं। हमने उनसे अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर भी बात की।

सवाल: संथाल-परगना के आदिवासी गांवों में किस हद तक घुसपैठ हो चुकी है? जवाब: ये सच है कि पाकुड़ में घुसपैठ एक गंभीर मुद्दा है। गांवों में आदिवासियों की आबादी लगातार कम हो रही है। उनकी जमीन गैर कानूनी रूप से खरीदी जा रही है। ये सब काम गैरकानूनी तरीके से हो रहा है।

सवाल: संथाल-परगना एक्ट के बावजूद गैर-आदिवासी कैसे जमीन खरीद रहे हैं? जवाब: झारखंड में पंचायत स्तर की कई सीटें आरक्षित हैं। इन सीटों पर मुस्लिम पहले आदिवासी महिलाओं को चुनाव लड़ने में मदद करते हैं। फिर महिला के मुखिया बनने पर उनसे शादी कर वे खुद मुखिया पति बन जाते हैं।

सवाल: आदिवासी कब्जे की शिकायत क्यों नहीं करते? जवाब: आदिवासियों के दिमाग में डर बैठ गया है। ये एक ऑर्गनाइज्ड क्राइम है, जिसमें षड्यंत्र के तहत जमीनें कब्जा की जा रही हैं। ईसाइयों ने 1855 में धर्मांतरण शुरू किया था, ये तब से चल रहा है। तब इसका विरोध भी हुआ था। उन्हें डर है अगर वो विरोध करेंगे, तो जमीन से भी जाएंगे और जान से भी।

JHARKHAND चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ कितना बड़ा मुद्दा
JHARKHAND चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ कितना बड़ा मुद्दा

आदिवासी जमीन पर कब्जे को लेकर हुआ था विवाद, गिफ्ट में मिलने का था दावा घटना 18 जुलाई 2024 की है। पाकुड़ के महेशपुर प्रखंड के गायबथान गांव में आदिवासी जमीन पर कब्जे को लेकर विवाद हुआ। आदिवासियों और मुस्लिम कम्युनिटी के बीच हिंसक झड़प हुई। मामला गायबथान के दंदु हेंब्रम और परमेश्वर हेंब्रम की जमीन का था। दोनों अपनी जमीन पर घर बना रहे थे। तभी सफारुद्दीन और कलीमुद्दीन अंसारी नाम के दो शख्स भीड़ के साथ वहां पहुंचे। उन्होंने घर में तोड़फोड़ की।

सफारुद्दीन अंसारी ने दावा किया कि उनके रिश्तेदार रहमतुल्लाह अंसारी को दंदु हेंब्रम के पूर्वज निमाई हेंब्रम ने 4 कट्‌ठा जमीन दान के तौर पर दी थी। जांच में पाया गया कि रहमतुल्लाह अंसारी जिस दान (गिफ्ट डीड) की बात कर रहे हैं। उसका कोई भी लिखित दस्तावेज उनके पास नहीं है। गायबथान गांव के प्रधान गणेश मुर्मू ने पुलिस को बताया कि जमीन दंदु हेंब्रम और परमेश्वर हेंब्रम की ही है।

बांग्लादेशी बॉर्डर से कंट्रोल हो रहा घुसपैठ का सिंडिकेट पाकुड़ सिविल कोर्ट के वकील और सोशल एक्टिविस्ट धर्मेंद्र कुमार ने हमें घुसपैठ का पूरा नेटवर्क समझाया। वे कहते हैं, ‘ये मामला अचानक शुरू नहीं हुआ। बांग्लादेशी घुसपैठ 1971 से जारी है। 1990 से 2015 के दौरान घुसपैठ के सबसे ज्यादा मामले सामने आए। बांग्लादेशियों को झारखंड की सीमा में लाने का जिम्मा घुसपैठ कराने वाले एजेंट्स पर होता है।‘

‘JHARKHAND के संथाल-परगना प्रमंडल में आने वाले कुछ जिले बांग्लादेश की सीमा से महज 40-50 किमी दूर हैं। इनमें पाकुड़ जिला सबसे नजदीक है। ये पश्चिम बंगाल के धूलियान से सटा हुआ है, जो बांग्लादेश से बॉर्डर शेयर करता है। बांग्लादेश और धूलियान के बीच गंगा नदी बहती है, जिसे नाव के जरिए पार करने के बाद घुसपैठ मुमकिन है।‘

धमेंद्र आगे कहते हैं, ‘जैसे ही बांग्लादेशी  JHARKHAND में दाखिल होता है। उसकी मदद के लिए लोकल एजेंट एक्टिव हो जाते हैं। एजेंट इन्हें आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड फर्जी तरीके से बनाने में मदद कर रहे हैं। इसके बाद यहां पहले से बसे उनके रिश्तेदार लोगों को पनाह देते हैं।‘

जोरू और जमीन का खेल आदिवासियों के लिए काम करने वाली संस्था जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक राजकिशोर हांसदा कहते हैं, ‘आदिवासी लड़कियों से शादी करना, उनकी जमीन अपने नाम करना और फिर वहीं घर बनाकर रहने लगना घुसपैठियों का मकसद होता है। बांग्लादेशी काम की तलाश में यहां पहुंच रहे हैं।

गांव का नाम सीता पहाड़ी पर एक भी सीता नहीं एडवोकेट धर्मेंद्र कुमार कहते हैं, ‘पाकुड़ में भवानीपुर, रामचंद्रपुर, मणिरामपुर, रहस्यपुर और सीता पहाड़ी जैसे गांव हैं। इनके नाम से लगता है कि सब हिंदुओं के गांव हैं, लेकिन मौजूदा स्थिति इससे अलग है।‘

‘भवानीपुर में एक भी भवानी नहीं हैं। रामचंद्रपुर में एक भी राम नहीं हैं। सीता पहाड़ी में एक भी सीता नहीं बचीं। गांव पूरी तरह से मुस्लिम बाहुल्य हो गए हैं। यहां सरना स्थल पर मदरसे-मस्जिद बनाए जा रहे हैं।‘

केंद्र ने भी माना- संथाल में आदिवासियों की संख्या 16% घटी केंद्र सरकार ने भी ये माना है कि JHARKHAND में बड़ी संख्या में घुसपैठ हुई है। 12 सितंबर को JHARKHAND हाईकोर्ट में दायर एफिडेविट में केंद्र सरकार ने दावा किया कि झारखंड में घुसपैठ के साथ बड़े पैमाने पर धर्मांतरण भी हो रहा है। आदिवासी परिवार के लोग पलायन कर रहे हैं।

केंद्र के दायर हलफनामे के मुताबिक, संथाल परगना प्रमंडल के 6 जिलों दुमका, पाकुड़, साहेबगंज, गोड्डा, जामताड़ा और देवघर की डेमोग्राफी में काफी तेजी से बदलाव आए हैं। इन जिलों में 1951 में आदिवासियों की आबादी 44.66% थी, जो 2011 में घटकर 28.11% हो गई। वहीं, मुस्लिमों की आबादी 9 से बढ़ कर 23% हो गई।

2000 में राज्य बने JHARKHAND की आबादी 1951 की जनगणना में करीब 97 लाख थी, जो 2011 में बढ़कर 3 करोड़ 30 लाख हो गई। यानी जिलों की आबादी में औसत 7 से 8 लाख का इजाफा हुआ। हाईकोर्ट के वकील अभय कुमार कहते हैं, ‘घुसपैठ के बिना इतनी तेजी से आबादी बढ़ना नामुमकिन है। इससे कहीं न कहीं साबित होता है कि एक बड़ी आबादी बाहर से आकर इन गांवों में बस गई।‘

JHARKHAND चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ कितना बड़ा मुद्दा
JHARKHAND चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ कितना बड़ा मुद्दा

बांग्लादेशी घुसपैठ पर ED ने केस दर्ज किया, पाकुड़ जिला प्रशासन का घुसपैठ से इनकार ED ने 4 जून 2024 को रांची के बरियातू थाने में दर्ज केस 188/24 को आधार बनाते हुए इन्फोर्समेंट केस इंफॉर्मेशन रिपोर्ट दर्ज की। इस केस में पुलिस ने JHARKHAND में अवैध तरीके से दाखिल हुई 3 बांग्लादेशी लड़कियों को अरेस्ट किया था। इसमें बरियातु इलाके के बाली रिसॉर्ट में काम कर रही बांग्लादेश के चटग्राम की निपा अख्तर, समरीन अख्तर और निंपी बरुआ शामिल हैं।

ED ने अपनी जांच में खुलासा किया कि ये लड़कियां सीक्रेट एजेंटों के जरिए बांग्लादेश बॉर्डर से जंगलों के रास्ते JHARKHAND लाई गई थीं। इनसे बॉर्डर पास कराने के लिए दलालों ने मोटी रकम वसूली थी। इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की धराओं में ED ने केस रजिस्टर किया था।

जब हमने पाकुड़ के DM मनीष कुमार और SP प्रभात कुमार से घुसपैठ के बारे में पूछा। दोनों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। SP ने कहा कि पाकुड़ में घुसपैठ की एक भी शिकायत नहीं मिली है। चुनाव में पॉलिटिकल पार्टियां इसे एजेंडा बना रही हैं।

लव-जिहाद, लैंड जिहाद और बांग्लादेशी घुसपैठ का चुनाव पर असर एक्सपर्ट बोले- झारखंड में धर्म और घुसपैठ मुद्दा नहीं, BJP को एडवॉन्टेज कम झारखंड के संथाल-परगाना कॉलेज के प्रोफेसर और पॉलिटिकल एनालिस्ट अविनाश हांसदा कहते हैं, ‘JHARKHAND में लोग डेवलपमेंट और जनजातियों के सुधार को देखकर वोट डालते हैं। BJP जो अवैध घुसपैठ का मुद्दा उठा रही है, चुनाव में उसका फायदा नहीं मिलेगा। JHARKHAND में धर्म कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। इसलिए लव जिहाद और ऐसे दूसरे मुद्दे यहां काम नहीं करेंगे।‘

JHARKHAND के सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट शंभू नाथ चौधरी कहते हैं, ‘BJP जानती है कि सरकार की कमियों को गिनाकर हम आदिवासियों का वोट नहीं बटोर सकते हैं। इसलिए वो बांग्लादेश घुसपैठ का मुद्दा उठाकर हेमंत सोरेन के आदिवासी और मुस्लिम वोट बैंक को दकराने की कोशिश कर रही है।’

‘चंपाई सोरेन का BJP में चले जाना कहीं न कहीं ट्राइबल वोटर्स पर इम्पैक्ट डालेगा। BJP आदिवासी गांवों में घुसपैठ के विरोध में ग्राम प्रधानों के साथ बैठक कर रही है। मांझी परगना जैसे बड़े सम्मेलन हो रहे हैं। इसका चुनावी फायदा जरूर मिल सकता है।‘

अब पॉलिटिकल पार्टियों की बात… JMM: विदेशी घुसपैठ केंद्र सरकार का फेलियर हमारा नहीं JMM के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट ने ये माना है कि देश में सबसे ज्यादा घुसपैठ असम में होती है। असम के CM झारखंड आकर बयान देते हैं कि यहां घुसपैठिए आ रहे हैं। अपनी गलतियों को दूसरों पर डालना BJP की पुरानी आदत है।

‘बॉर्डर की सुरक्षा केंद्र के पास है। अमित शाह इसे देख रहे हैं। अगर बांग्लादेशी घुस रहे हैं, तो ये उनका फेलियर है न कि राज्य सरकार का।”

BJP: JHARKHAND में आदिवासी बहू-बेटियों के साथ अत्याचार हो रहा है झारखंड के पूर्व CM चंपाई और BJP लीडर सोरेन कहते हैं, ‘आज संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या बढ़ रही है। संथाल के एक दर्जन से भी ज्यादा गांवों में बांग्लादेशी घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया है। जिस गांव में 100-150 आदिवासी परिवार रहते थे। वहां आज एक भी परिवार नहीं बचा है।‘

‘आदिवासियों की बहू-बेटियों के साथ अत्याचार, उनकी जमीन पर जबरन कब्जा किया जा रहा है। हत्या कर डर का माहौल बनाया जा रहा है। अगर इन सब के बाद भी राज्य सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है, तो ये बहुत गलत हो रहा है।‘

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