JHARKHAND में फैमिली पॉलिटिक्स

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25% सीटों पर INDIA-NDA ने राजनेताओं के परिजन को उतारा, BJP की लिस्ट में पत्नी, बहू, बेटा से लेकर भाई तक

‘आज भारत के सामने परिवारवादी राजनीति बड़ा खतरा है। परिवारवादी सबसे ज्यादा नुकसान देश के युवाओं का करते हैं। ये युवाओं को मौका देने में विश्वास नहीं करते हैं। इसलिए मैंने लाल किले से आह्वान किया है कि मैं देश के एक लाख ऐसे नौजवानों को राजनीति में लाऊंगा जिनके परिवार का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है।’ PM नरेंद्र मोदी

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JHARKHAND   मुक्ति मोर्चा (झामुमो) वंशवाद की राजनीति पर विश्वास रखता है तभी उसने पार्टी नेता हेमंत सोरेन, पत्नी कल्पना सोरेन और भाई बसंत सोरेन को चुनाव मैदान में उतारा है।’ हिमंत बिस्व सरमा, असम सीएम और भाजपा नेता

‘पीढ़ियों के संघर्ष, सेवा और बलिदान की परंपरा को परिवारवाद कहने वाले अपने ‘सरकारी परिवार’ को सत्ता की वसीयत बांट रहे। कथनी और करनी के इसी फर्क को नरेंद्र मोदी कहते हैं!’ राहुल गांधी, नेता विपक्ष और कांग्रेस सांसद, 11 जून 2024

वंश-विरासत, परिवारवाद। अक्सर ये शब्द राजनीति में ज्यादा सुनाई देते हैं। जब-जब चुनाव आता है राजनीतिक दल एक-दूसरे पर इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं, लेकिन हकीकत इसके उलट है। झारखंड विधानसभा के चुनावी मैदान में वंश-विरासत, रिश्तेदारी-नातेदारी की फसल एक बार फिर लहलहा रही है। कोई भी पार्टी इस मामले में अपवाद नहीं है।

टिकटों के बंटवारे में पार्टी और विचारों के प्रति समर्पण, निष्ठा और जमीनी संघर्ष के पैमानों के ऊपर परिवारवाद फैक्टर इस बार भी हावी है।

JHARKHAND  कांग्रेस की करीब एक तिहाई सीटों पर परिवार का कब्जा

टिकट वितरण को देखा जाए तो सबसे ज्यादा कांग्रेस ने अपने कोटे की करीब एक तिहाई सीटों पर राजनेताओं के परिवारों को उतारा है। कांग्रेस 30 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें 9 टिकट राजनेताओं के परिजन को दिया है। वहीं, झामुमो 43 में से 9 टिकट पर परिवार के नेताओं को उतारा है। इसमें तीन सीटें तो शिबू सोरेन के परिवार ही है। वहीं, भाजपा 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें से 18 टिकट राजनेताओं के परिजन को दिया है।

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JHARKHAND 6 बहुएं संभाल रहीं सियासी विरासत

इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की 2 बहुएं मैदान में है। गांडेय सीट से झामुमो ने शिबू के बेटे हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को उतारा है। वहीं, भाजपा ने उनकी बड़ी बहू सीता सोरेन को जामताड़ा से टिकट दिया है। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास भी भाजपा के टिकट पर जमशेदपूर पूर्वी सीट से मैदान में है।

शहीद निर्मल महतो की बहू सविता महतो को झामुमो ने इचागढ़ सीट से टिकट दिया है। उनके पति दिवंगत सुधीर महतो डिप्टी सीएम रह चुके हैं। संयुक्त बिहार के कद्दावर नेता रहे अवध बिहारी सिंह की बहू दीपिका पांडे महगामा से फिर से मैदान में हैं। 2019 में भी वो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत चुकी हैं। हेमंत सरकार में मंत्री थीं।

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वहीं, राजद ने सत्यानंद भोक्ता की बहू रश्मि प्रकाश को चतरा (सुरक्षित) सीट से उतारा है। चूंकि भोक्ता की जाति को 2022 में केंद्र सरकार ने एससी से बाहर कर दिया। इसके बाद वह और उनके बेटा अब चतरा से चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। इस कारण उन्होंने बहू को उतारा है। रश्मि दलित वर्ग से आती हैं। बोकारो से दिवंगत समरेश सिंह की बहू श्वेता सिंह को कांग्रेस ने अंतिम समय में मैदान में उतारा है। वह 2019 में भी चुनाव लड़ चुकी है। उस वक्त 13 हजार वोटों से चुनाव हारीं।

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JHARKHAND  जीतने वाले उम्मीदवारों की चाहत में बढ़ रहा परिवारवाद

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JHARKHAND  की राजनीति के जानकार सीनियर जर्नलिस्ट चंदन मिश्रा बताते है, ‘आजकल चुनावों में जीतने वाले उम्मीदवारों की तलाश हर पार्टी कर रही है। यही कारण है कि सभी दल परिवारों को ज्यादा तरजीह देते दिख रहे हैं। जबकि, सामान्यतः ऐसा नहीं होना चाहिए। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है। हालांकि, अंतिम फैसला जनता को ही करना है।

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JHARKHAND राजनेताओं के परिवार को तरजीह देने के कारण

  1. चुनाव जीतने की क्षमता- पार्टियां ये देख रही है कि कौन सा उम्मीदवार जीत सकता है। किस उम्मीदवार के पास क्या-क्या संसाधन हैं। प्रायः देखा गया है कि राजनेताओं के परिवार के पास समर्थकों की संख्या ज्यादा होती है। उनके पास अन्य संसाधन भी ज्यादा होते हैं।
  2. कुछ पार्टियां मजबूरी में भी परिवारों के तरफ रुख करती हैं। कई बार पार्टी के पास प्रत्याशी नहीं होते हैं तो लड़ाने के लिए नेताओं के बच्चों को टिकट दे देती है
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  4. नेताओं का प्रभाव भी मायने रखता है। कुछ नेता ऐसे हैं जिनका असर चार से पांच सीटों पर होता है। ऐसे में उनके परिवार को एक टिकट देने में पार्टियां गुरेज नहीं करती।

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